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ह॒विर्ह॑विष्मो॒ महि॒ सद्म॒ दैव्यं॒ नभो॒ वसा॑न॒: परि॑ यास्यध्व॒रम् । राजा॑ प॒वित्र॑रथो॒ वाज॒मारु॑हः स॒हस्र॑भृष्टिर्जयसि॒ श्रवो॑ बृ॒हत् ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

havir haviṣmo mahi sadma daivyaṁ nabho vasānaḥ pari yāsy adhvaram | rājā pavitraratho vājam āruhaḥ sahasrabhṛṣṭir jayasi śravo bṛhat ||

पद पाठ

ह॒विः । ह॒वि॒ष्मः॒ । महि॑ । सद्म॑ । दैव्य॑म् । नभः॑ । वसा॑नः । परि॑ । या॒सि॒ । अ॒ध्व॒रम् । राजा॑ । प॒वित्र॑ऽरथः । वाज॑म् । आ । अ॒रु॒हः॒ । स॒हस्र॑ऽभृष्टिः । ज॒य॒सि॒ । श्रवः॑ । बृ॒हत् ॥ ९.८३.५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:83» मन्त्र:5 | अष्टक:7» अध्याय:3» वर्ग:8» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (हविः) आप हवि हैं (हविष्मः) और हविवाले हैं। (महि) बड़े हैं। (दैव्यं) दिव्यरूपवाला (नभः) यह विस्तृत आकाश (सद्म) आपका गृह है। इसमें (वसानः) निवास करते हुए (अध्वरं) अहिंसारूप यज्ञ को (परियासि) प्राप्त होते हैं। (राजा) आप सर्वत्र विराजमान हो रहे हैं। (पवित्ररथः) पवित्र गतिवाले (वाजमारुहः) सब प्रकार के बलों को धारण किये हुए हैं। (सहस्रभृष्टिः) अनन्त प्रकार की पवित्रताओं को धारण किये हुए हैं (बृहत्, श्रवः) सर्वोपरि यश को धारण किये हुए आप (जयसि) सबको जय करते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में परमात्मा को सहस्त्र शक्तियोंवाला वर्णन किया है। जैसा कि “सहस्त्रशीर्षा पुरुषः” इस मन्त्र में वर्णन किया गया है। उस अनन्तशक्ति युक्त परमात्मा की उपासना करके जो पुरुष तपस्वी बनते हैं, वे इस भवनिधि से पार होते हैं ॥५॥ यह ८३ वाँ सूक्त और ८ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमात्मन् ! (हविः) त्वं हविःस्वरूपोऽसि। अथ च (हविष्मः) हविर्वानसि। (महि) महानसि। (दैव्यम्) दिव्यस्वरूपवान् (नभः) विस्तृत आकाशः (सद्म) त्वदीयं गृहमस्ति। अस्मिन् गृहे (वसानः) निवसन् (अध्वरम्) अहिंसारूपं यज्ञं (परियासि) प्राप्नोषि। तथा (राजा) त्वं सर्वत्र विराजसे। अथ च त्वं (पवित्ररथः) पूतगतिवान् (वाजमारुहः) सर्वविधबलधारकोऽसि। तथा (सहस्रभृष्टिः) नानाविधपवित्रतां अदधत (बृहत्, श्रवः) सर्वोत्कृष्टयशो बिभ्रत् (जयसि) अखिलान् जनान् विजयसे ॥५॥ इति त्र्यशीतितमं सूक्तमष्टमो वर्गश्च समाप्तः ॥